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छत्तीसगढ़ की राजनीति में शुक्ल परिवार का प्रभाव: एक युग का अंत

  छत्तीसगढ़ की राजनीति में शुक्ल परिवार का प्रभाव: एक युग का अंत रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजनीति में पंडित रविशंकर शुक्ल का दबदबा बीसवीं सदी के...

 छत्तीसगढ़ की राजनीति में शुक्ल परिवार का प्रभाव: एक युग का अंत

रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजनीति में पंडित रविशंकर शुक्ल का दबदबा बीसवीं सदी के प्रारंभ से ही रहा है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर राज्य गठन तक, शुक्ल परिवार का प्रभाव प्रदेश की राजनीति पर स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। पंडित रविशंकर शुक्ल 1921 में रायपुर जिला पंचायत के सदस्य बने और 1922 से 1937 तक इसके अध्यक्ष पद पर रहे। 1936 में वे मध्यप्रांत और बरार के शिक्षा मंत्री बने और 1937 में मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

1956 में मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने पंडित रविशंकर शुक्ल ने राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके बाद उनके परिवार के कई सदस्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे और महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हुए।

हालांकि, समय के साथ राजनीतिक परिदृश्य बदला और 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद शुक्ल परिवार की लोकप्रियता में गिरावट देखी गई। 2003 के विधानसभा चुनाव में पूरा शुक्ल परिवार एक साथ चुनाव हार गया, जो प्रदेश की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत था।

शुक्ल परिवार की हार के पीछे कई कारण थे। एक ओर जहां नई राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने उभरकर जनता का विश्वास जीता, वहीं कांग्रेस के भीतर भी गुटबाजी और नई रणनीतियों की कमी ने इस हार में योगदान दिया।

आज छत्तीसगढ़ की राजनीति में कई नए चेहरे सामने आ चुके हैं, लेकिन पंडित रविशंकर शुक्ल की विरासत और योगदान को कोई नकार नहीं सकता। प्रदेश के विकास में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा, लेकिन 2003 का चुनाव यह दर्शाता है कि लोकतंत्र में बदलाव ही स्थायी नियम है।

यह समाचार छत्तीसगढ़ की राजनीति में शुक्ल परिवार के प्रभाव और उसके पतन को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। यदि आप इसमें कोई संशोधन या अतिरिक्त जानकारी जोड़ना चाहते हैं, तो बताइए!


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